मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

''भूत का भविष्य''

मै खुद नही जानता
कि---
मै क्या हूँ?
अतीत हूँ या वर्तमान!
वर्तमान के बारे मे सोचता हूँ
तो----
अतीत,
कोरे कागज पर काली स्याही सा;
उभर कर
सामने आ जाता है।
मै खुद नहीं जानता
कि-----
मै क्या हूँ?
भूत हूँ या भविष्य?
भविष्य की कल्पना मात्र से ही;
रोंगटे खड़े हो जाते है,
क्यों कि----
भूत का भविष्य
सिर्फ
वर्तमान बन कर रह जाता है।

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

मै क्या हू?

कभी कभी मै सोंचता हूँ
कि.......
मै क्या हूँ?
कौन हूँ?
अगर हूँ भी , तो क्यों हूँ?
क्योंकि मै जो हूँ,
मुझे वह नही , कुछ और होना चाहिए था।
क्योंकि मुझे......
कुछ बनना था,
कुछ करना था,
सबसे अलग, कुछ नया,
अपने लिए, अपने समाज के लिए।
पर अफसोस!
मै......
वह न बन सका,
वह न कर सका,
फिर भी मै इसके लिए,
किसी और को दोष नही देना चाहता,
क्योंकि'आदमी'
स्वयं
अपने आप को बिगाड़ता है,
अपने आप को गढ़ता है।

By...kumar ajeet

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

हवा और मै।

छत की मुंडेर पर जलाकर चराग
मै हवा से शर्त रखना चाहता हूँ।

देखो तो सही मै कितना नासमझ हूँ
हाथों से हवा का रुख बदलना चाहता हूँ।

मै जानता हूँ हार जाऊँगा मगर
देखना मै रुख हवा का चाहता हूँ।

जीत कर भी क्या मिलेगा अब मुझे
मै तो अब खुद हार जाना चाहता हूँ।

By...kumar ajeet

जिन्दगी

जिन्दगी को छेड़ मत ऐ आदमी
जिन्दगी को जिन्दगी जैसी चलन दे।

कब परिन्दो ने छुआ था आसमाॅ
इस कहानी को कहानी तू रहन दे।

गम खुशी का फलसफा है जिन्दगी
गम गलत करने को आँखें नम रहन दे।

इक जिन्दगी मे सैकड़ों है जिन्दगी 
जिन्दगी एकाध पूरी तू करने दे।
By...Kumar ajeet